Sunday, March 31, 2019

Saturday, April 11, 2015

नर्तन

***************************नर्तन ************************* सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड नर्तन में तल्लीन है। यह विस्व परब्रह्म नारायण का विराट रूप है। यह आभाषित होता है की नारायण का शाश्वत नर्तन यह जगत है। जड़ भी नर्तन में तल्लीन है चेतन भी। प्रकृति भी नर्तन में है जीवात्मा भी नर्तन में सक्रिय है। भगवत लीला में कोई मूर्च्छा में तो कोई जाग्रत हो नर्तन कर रहा है। जो मूर्च्छा में है वो विषय कामनाओं के अनियंत्रित प्रवाह में गतिमान है। जो जाग्रत है वह स्वतंत्र हो आह्लाद में स्वयं के संकल्प से न की त्रिगुणमयी प्रकृति से प्रेरित हो , नृत्य में तल्लीन है। कोई संसार से विरक्त हो अध्यात्म साधना में रत है . कोई राग में विस्व मधुवन में रमण कर रहा है। परन्तु एक ऐसा भी है जो राग एवं वैराग से परे हो स्वयं के अमित आनंद सागर में आह्लादित होता हुआ स्वयं से सम्मोहित स्वयं के लिए परब्रह्म नारायण संग दिव्य नर्तन में तल्लीन है। कभी अनुराग का सागर कभी वैराग जीवन में। ये है परब्रह्म नारायण लीला अमित जीवन में। वो नर्तन में स्वयं तल्लीन हो जग को नचाता है। वो नट है उसकी माया ही भ्रमाती मन को जीवन में। दृश्य का ध्यान क्या होगा स्वयं का जब मैं ध्याता हूँ। स्वयं के विस्मरण में ही परम सत मैं ज्ञाता हूँ। पूर्ण होती है जिज्ञासा जहां जिज्ञासु हो सम्मुख । स्वयं से हो के सम्मोहित स्वयं के गीत गाता हूँ। - अमित श्रीवास्तव एडवोकेट सिविल कोर्ट सीतापुर प्रदेश भारत। २६१००१

Thursday, December 1, 2011

वैष्णवी ज्योति


तुम्हें आभास तो होगा किया मानस में जो अर्चन . तुम्हारी आहट को व्याकुल मेरा छण छण है अंतर्मन . लालिमा तेरे अधरों की अमित गीतों की है सरगम . प्रियतमें तुमसे ही अनुराग में होता है सब सृजन . तुम्हारा भोलापन मुझको सदा ऐसे लुभाएगा , तेरे अभिज्ञान में कैसे ये मेरा सत्य आएगा , स्रष्टि गाएगी एक दिन देख लेना मेरी तानों में , अमित वीणा का सम्मोहन कभी ऐसा ये छाएगा . प्रिये तुम प्यार से सुन लो गीत मैने जो है गाया , मेरे स्वप्नों में आ आ के तुम्हीं ने मुझको भरमाया , सतत मन साधना में रत अमित युग युग से कुछ ऐसा , सामने जो है आँखों के उसे मैं देख न पाया . कभी पतझड़ सा आभाषित कभी मधुमास है जीवन , कभी आरण्य दुर्गम है कभी मधुवन है ये जीवन , अनिर्वचनीय लीला है अमित अज्ञेय की ऐसी , कभी नश्वर जगत लगता कभी शाश्वत है ये जीवन . अनावृत सत्य जीवन का घटित हो जब भी जीवन में .विलक्षण रूप अंतरण द्रष्टिगोचर हो जीवन में .विहंग जब जब भी हृदयाकाश में उड़ता अमित स्वच्छंद .तुम्हीं तुम ही हो नैनों में तुम्हीं तुम ही हो जीवन में . पंचस्वर में प्रलापों में निशीथों में पुकारा है . मेरा मन मेरे वश में है कहाँ ये तो तुम्हारा है . तुमसे अभिभूत अंतर्मन अमित तेरा है अनुगामी . तुम्हारा ही तो सब कुछ है न कुछ अब तो हमारा है . वैष्णवी ज्योति की आभा रश्मि नीलम सी दर्शित है . विश्व का एक एक कण कण तेरी महिमा में मंडित है . अवतरण दिव्य हो तेरा अभीप्सा है अमित मन में . अहम् मेरा तुम्हारे नेह की आभा में खंडित है . कल्पना भावनाओं में तेरी मूरत बनाएगी . तेरा सारूप्य ही तो मैं हूं स्मृति कब ये आएगी . मन्त्र अष्टाक्षर जैसे प्रभावी अमित अर्चन में . प्रणय की ज्योति वैसे ही तेरा सामीप्य लाएगी . - गीत - अमित श्रीवास्तव अधिवक्ता , सदस्य सीतापुर बार एसोसिएशन , सदस्य हिंदी विधि प्रतिष्ठान , सदस्य हिंदी सभा , सीतापुर , उत्तर प्रदेश , भारत .

वैष्णवी ज्योति


तुम्हारा भोलापन मुझको सदा ऐसे लुभाएगा , तेरे अभिज्ञान में कैसे ये मेरा सत्य आएगा , स्रष्टि गाएगी एक दिन देख लेना मेरी तानों में , अमित वीणा का सम्मोहन कभी ऐसा ये छाएगा . प्रिये तुम प्यार से सुन लो गीत मैने जो है गाया , मेरे स्वप्नों में आ आ के तुम्हीं ने मुझको भरमाया , सतत मन साधना में रत अमित युग युग से कुछ ऐसा , सामने जो है आँखों के उसे मैं देख न पाया . कभी पतझड़ सा आभाषित कभी मधुमास है जीवन , कभी आरण्य दुर्गम है कभी मधुवन है ये जीवन , अनिर्वचनीय लीला है अमित अज्ञेय की ऐसी , कभी नश्वर जगत लगता कभी शाश्वत है ये जीवन . अनावृत सत्य जीवन का घटित हो जब भी जीवन में .विलक्षण रूप अंतरण द्रष्टिगोचर हो जीवन में .विहंग जब जब भी हृदयाकाश में उड़ता अमित स्वच्छंद .तुम्हीं तुम ही हो नैनों में तुम्हीं तुम ही हो जीवन में . पंचस्वर में प्रलापों में निशीथों में पुकारा है . मेरा मन मेरे वश में है कहाँ ये तो तुम्हारा है . तुमसे अभिभूत अंतर्मन अमित तेरा है अनुगामी . तुम्हारा ही तो सब कुछ है न कुछ अब तो हमारा है . वैष्णवी ज्योति की आभा रश्मि नीलम सी दर्शित है . विश्व का एक एक कण कण तेरी महिमा में मंडित है . अवतरण दिव्य हो तेरा अभीप्सा है अमित मन में . अहम् मेरा तुम्हारे नेह की आभा में खंडित है . कल्पना भावनाओं में तेरी मूरत बनाएगी . तेरा सारूप्य ही तो मैं हूं स्मृति कब ये आएगी . मन्त्र अष्टाक्षर जैसे प्रभावी अमित अर्चन में . प्रणय की ज्योति वैसे ही तेरा सामीप्य लाएगी . - गीत - अमित श्रीवास्तव अधिवक्ता , सदस्य सीतापुर बार एसोसिएशन , सदस्य हिंदी विधि प्रतिष्ठान , सदस्य हिंदी सभा , सीतापुर , उत्तर प्रदेश , भारत .

Friday, October 1, 2010

तप


उर धरी उमा प्रानपति चरना ,जाई बिपिन लागीं तप करना . अति सुकुमार न तनु तप जोगु ,पति पद सुमिरि तजेउ सब भोगु .नित नव चरन उपज अनुरागा ,बिसरी देह तपहिं मनु लागा .सम्बत सहस मूल फल खाए ,सागू खाई सत बरष गवांए . कछु दिन भोजन बारी बतासा ,किए कठिन कछु दिन उपवासा .बेल पाती महि परई सुखाई , तीनी सहस सम्बत सोई खाई .पुनि परिहरे सुखानेउ परना , उमहि नाम तब भयऊ अपरना . यदि आत्मा उमा परम भक्ति , परम श्रद्धा , परम विश्वास एवं अत्यंत भगवत प्रेम से ,सपूर्ण निष्ठा से तप करे तो परब्रह्म शिव का दर्शन होके ही रहेगा .आध्यात्मिक साधक की समस्या यह है की भगवान् के प्रति परम व्याकुलता कैसे हो .ऐसी व्याकुलता जेसे प्रेमी प्रेमिका में होती है वे परिवार समाज किसी की चिंता नहीं करते , जैसे धनिक धन के लिए , कामी काम के लिए , राजनीतिग्य राज सत्ता के लिए चाहे राष्ट्र समाज विश्व का सत्यानाश हो जाय . जब हमारा अन्तः करण भगवान् नारायण के लिए परम व्याकुल होगा श्री हरी के दर्शन हो जायेंगे . सब कै ममता ताग बटोरी मम पद बाँध प्रीत कै डोरी - अमित श्रीवास्तव अधिवक्ता सीतापुर

Friday, August 27, 2010

विश्वतोमुखः VISWATOMUKHAH

त्वम् स्त्री त्वम् पुमानसि कुमार त्वम् उत वा कुमारी ,त्वम् जीर्णो दण्डेन वंचसि त्वम् जातो भवसि विश्वतोमुखः -श्वेताश्वतरोपनिषद TWAM STRI TWAM PUMAANASI KUMAR TWAM UT VA KUMAARI ,TWAM JEERNO DANDEN VANCHASI TWAM JAATO BHAVASI VISWATOMUKHAH-SHWETASHWATROPNISHAD

Tuesday, December 8, 2009